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Hindi Poetry ["तुम कितनी सुंदर लगती हो"] Hindi Kavita||Hindi Shayari||HPoetry||


तुम कितनी सुंदर लगती हो

तुम कितनी सुंदर लगती हो
सूट पहनती हो तब तो कतई जहर लगती हो
यूँ तो कोई इल्ज़ाम नही लगाता तुमपर
वरना तुम्हे क्या पता तुम आएदिन कितने कत्ल करती हो

तुम कितनी सुंदर लगती हो
सर्दी के मौसम में सुबह का आफताब लगती हो
मौसम भी खुदबखुद करवटे बदलने लगता है
आफताब की किरणो में जब तुम अंगड़ाइयां भरती हो

तुम कितनी सुंदर लगती हो
थोड़ी पागल लगती हो जब बकबक करती हो
कौंन कम्बकत सुनता है तुम्हारी बकवास
हम तो बस ताक में रहते है जब तुम अपने होंठो पर मुस्कान भरती हो

तुम कितनी सुंदर लगती हो
कायनात भरती हो जब आंखों में काजल करती हो
तैरना सीखना पड़ेगा अब हमको भी
वरना तुम तो हरपल आंखों में डुबाने को तैयार रहती हो

तुम कितनी सुंदर लगती हो
गुलाबो से रंग लेकर जब तुम उन्हें अपने लबो में भरती हो
कसम से धड़कने 100 के पार हो जाती है
शर्म में सराबोर लबो से जब तुम खूबसूरती की बरसात करती हो

तुम कितनी सुंदर लगती हो
घायल करती हो जब तुम अपनी लटों से अटखेलिया करती हो
कयामत का मंजर नज़र आता है तेरी ओर
जब तुम उंगलियो से अपनी जुल्फों को आज़ाद करती हो

तुम कितनी सुंदर लगती हो
नदी की तरह जब तुम लेहरा कर चलती हो
लोग मरते है तो मरे तुझपर
पर तुम ख़ामख़ा इस बात की परवाह करती हो

तुम कितनी सुंदर लगती हो
गुस्से में लाल जब तुम टमाटर की तरह अपने गाल करती हो
तुम्हे तंग करने का मकसद और कुछ नही होता
पर सम्भलना मुश्किल हो जाता है जब तुम खामखा बवाल करती हो

तुम कितनी सुंदर लगती हो
जब भी देखता हुँ तुम्हे तुम मुझे मुझ सी लगती है
असल तो बना ही दिया है पागल
और अब तो ख्वाबो में भी आकर तुम मुझे बेहाल करती हो

तुम कितनी सुंदर लगती हो
नीले खुले आसमान पर बादलो से बनी खुदा की कोई चित्रकारी लगती हो
यकीन नही आता तो मेरी नज़र से देखो
इंद्रधनुष के रंगों से निखारी और सँवारी तुम कितनी प्यारी लगती हो

तुम कितनी सुंदर लगती हो
पंछियो को उनका हक़ देकर जब पिंजरे से रिहा करती हो
खुदा का अक्स नज़र आता है तुम पर
जब तुम आंखे बन्द कर उनके लिए सजदे अदा करती हो



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