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Hindi Poetry[शायरीयां] Hindi Shayari|| Hindi Kavita||HPoetry||




"तेरी यादों में कुछ ऐसे छटपटा से रहे है
आंखों में नमी भी सूख गयी रातों को जागकर"
अब ऐसा लगता है न की खाशइश्क़ न किया होता
पर अगर न किया होता तो क्या वो कमी पूरी हो चुकी होती जो आज भी महसूस होती है
रोना है थोड़ी देर तो रो लो
अपने अश्को को दुसरो से तो छिपा लोगे पर पर आईने में कैसे देखोगे जब वो सामने आएंगे
"दर्द देने के बहाने ही सही तेरी नफरत से भी रूबरू हो लेंगे
कमसेकम तेरा एक नया चेहरा तो दिखेगा जो तूने दुनिया से छिपाया है"
मुझे तुझसे कोई शिकायत तो नही है नही बिलकुल नही
बस खुद के भरोसे पर भरोसा करना अब मुश्किल सा लगता है
जो मैं दिन रात ये मानता था की भरोसा ही शायद किसी रिश्ते की सबसे गहरी नीव होती है
"क्या पता था बिना तैयारी इतने इम्तिहान देने होंगे
वरना हम भी इश्क़ करने की जगह कुछ पड़ लेते"
साजिश या षडयंत्र तो आती नही पर शायद तुझे पाने के लिए वो भी कर लेते
पर फिर खुद से पूछा की क्या मोहब्बत चुराई जा सकती है क्या मैं इसे छीन सकता हुँ
कल किसी ने तुम्हे मुझसे चुरा या छीन लिया तो
"कहते है खुदखुशी एक गुनाह है
और हम रोज़ मरते थे उनसे मिलने के लिए"

मुझे याद है जब तुमसे पहली बार मिला था मैंने तब तय कर लिया था की तेरे हाथो की लकीरों को अपनी किस्मत बनाना है
तेरे ख्वाबो की मंज़िल तक जो सड़क जाती है पर तेरे साथ हाथ पकड़कर चलना है
पर खैर जाने दो जो हुआ सो हुआ
"मैं आजकल एक ऐसी गली से गुज़र रहा हुँ जहां बहुत अंधेरा है
कुछ पता नही सफर का बस इंतेज़ार में हुं उसके जिसके पीछे मेरा सवेरा है"

अब भटक चुका हुँ बहुत अब इंतेज़ार ही मेरे किस्मत है
तुम्हे भूल नही सकता क्या करूं बहुत जरूरी है
मुझे तो अंधेरो में रहने की आदत है
पर तुम मुझे याद कर खुद को अकेला मत कर लेना
तुमसे दूर रहना मंज़ूर है पर तुम्हारे चहेरे पर उदासी मत आने देना
"अब हम इश्क़ तलाशते नही की मुकम्मल हो जाए
बस इंतेज़ार करते है की कब सुबह से शाम हो जाए"
सच बताऊ तुम्हारी बहुत याद आती है
रोज़ अपने दिनभर के काम में काम में नही बस तुम्हारेबारे में ही सोचता रहता हुँ
खाश हम फिर कभी मिलेंगे या नही
मिलेंगे तो कैसे मिलेंगे और क्या कहेंगे
क्या तुम्हे भी मुझसे मिलने की चाहत है
"नाता भले तुजसे अब कोई नही
पर मुझे कोई बुलाता है तो सांसे अब भी ठहर जाती है"
पता नही अब भी क्यों तेरी चेहरे की हँसी सब जगह नज़र आती है
अजीब बात है न जब भी तुमसे मिलता था शर्म के मारे मै तुम्हारे चेहरे की ओर देख भी नही पता था
और तुम मुस्कुरा कर कहती थी की तुम बहुत शर्मीले हो,
"पहले बेखबर था मैं खुद की सच्चाई से
अब पता चला लोग इश्क़ क्यों करते है"
मेने इश्क़ तुम्हे पाने के लिए नही किया था
मैं बस थोड़ा से साथ चाहता था तुम्हारा क्योंकि मैं बहुत अकेला था
और जितने भी पल तुम मेरे साथ थी उसके लिए तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया
पर अब भी मैं तुम्हे बहुत याद करता हुँ... 





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