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Best Hindi Poetry ["न जाने कैसे"] Hindi Kavita||HPoetry||

एक अजनबी की तरह मिले थे
"न जाने कैसे" दोस्त बन गए
पहले रोज़ मिलना होता था खुदसे
न जाने कैसे अब खो गए

ढूंढते वो तक़दीर हाथों में
न जाने कैसे तुम मिल गये
सावन तो बहुत दूर था अभी
न जाने कैसे हम खिल गए

बरसात में नदिया भर आयी
न जाने कैसे हम रह गए
जिंदगी ठहरीसी थी अबतक
न जाने कैसे अब बह गए

पहले रहते थे अक्सर घर पे
न जाने कैसे अब बाहर निकलने लगे
तुजसे बात करने के लिए एक एक बहाना
न जाने कैसे इख्तियार करने लगे



याद करते करते दर्द को अपने
न जाने कैसे हम सो गए
तुम्हे अपना बनाने चाहत थी आंखों में
न जाने कैसे हम रो गए

इश्क़ में अनजान थे जिन पड़ावों से
न जाने कैसे अब सब जानने लगे
इबादते खाली ही रहती थी खुदा से
न जाने कैसे पर अब रोज़ तुम्हे मांगते लगे

आहिस्ता आहिस्ता करीब दिल के
न जाने कैसे तुम आ गए
आ ही जाती बात लबो पर भी
न जाने कैसे हम घबरा गए

तेरी सादगी और अदा की तारीफ
न जाने कैसे रोज़ करने लगे
अपनी हर कविता में तेरी अदाओ को
न जाने कैसे रोज़ भरने लगे

तुम मेरी किस्मत बन के आये जिंदगी में
न जाने कैसे हम पहचान ने लगे
कोसते थे जिस किस्मत को अपनी
न जाने कैसे अब मानने लगे

दिल में पड़े थे खाली मकान
न जाने कैसे सब भर गए
डरते थे जिस प्यार से अबतक
न जाने कैसे अब कर गए


न जाने कैसे
न जाने केसे

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Hindi Poetry ["तुम कितनी सुंदर लगती हो"] Hindi Kavita||Hindi Shayari||HPoetry||

तुम कितनी सुंदर लगती हो तुम कितनी सुंदर लगती हो सूट पहनती हो तब तो कतई जहर लगती हो यूँ तो कोई इल्ज़ाम नही लगाता तुमपर वरना तुम्हे क्या पता तुम आएदिन कितने कत्ल करती हो तुम कितनी सुंदर लगती हो सर्दी के मौसम में सुबह का आफताब लगती हो मौसम भी खुदबखुद करवटे बदलने लगता है आफताब की किरणो में जब तुम अंगड़ाइयां भरती हो तुम कितनी सुंदर लगती हो थोड़ी पागल लगती हो जब बकबक करती हो कौंन कम्बकत सुनता है तुम्हारी बकवास हम तो बस ताक में रहते है जब तुम अपने होंठो पर मुस्कान भरती हो तुम कितनी सुंदर लगती हो कायनात भरती हो जब आंखों में काजल करती हो तैरना सीखना पड़ेगा अब हमको भी वरना तुम तो हरपल आंखों में डुबाने को तैयार रहती हो तुम कितनी सुंदर लगती हो गुलाबो से रंग लेकर जब तुम उन्हें अपने लबो में भरती हो कसम से धड़कने 100 के पार हो जाती है शर्म में सराबोर लबो से जब तुम खूबसूरती की बरसात करती हो तुम कितनी सुंदर लगती हो घायल करती हो जब तुम अपनी लटों से अटखेलिया करती हो कयामत का मंजर नज़र आता है तेरी ओर जब तुम उंगलियो से अपनी जुल्फों को आज़ाद करती हो तुम कितनी सुंदर लगती हो नदी की तरह जब तुम लेहरा कर चलती हो लोग मर