एक अजनबी की तरह मिले थे
"न जाने कैसे" दोस्त बन गए
पहले रोज़ मिलना होता था खुदसे
न जाने कैसे अब खो गए
ढूंढते वो तक़दीर हाथों में
न जाने कैसे तुम मिल गये
सावन तो बहुत दूर था अभी
न जाने कैसे हम खिल गए
बरसात में नदिया भर आयी
न जाने कैसे हम रह गए
जिंदगी ठहरीसी थी अबतक
न जाने कैसे अब बह गए
पहले रहते थे अक्सर घर पे
न जाने कैसे अब बाहर निकलने लगे
तुजसे बात करने के लिए एक एक बहाना
न जाने कैसे इख्तियार करने लगे
याद करते करते दर्द को अपने
न जाने कैसे हम सो गए
तुम्हे अपना बनाने चाहत थी आंखों में
न जाने कैसे हम रो गए
इश्क़ में अनजान थे जिन पड़ावों से
न जाने कैसे अब सब जानने लगे
इबादते खाली ही रहती थी खुदा से
न जाने कैसे पर अब रोज़ तुम्हे मांगते लगे
आहिस्ता आहिस्ता करीब दिल के
न जाने कैसे तुम आ गए
आ ही जाती बात लबो पर भी
न जाने कैसे हम घबरा गए
तेरी सादगी और अदा की तारीफ
न जाने कैसे रोज़ करने लगे
अपनी हर कविता में तेरी अदाओ को
न जाने कैसे रोज़ भरने लगे
तुम मेरी किस्मत बन के आये जिंदगी में
न जाने कैसे हम पहचान ने लगे
कोसते थे जिस किस्मत को अपनी
न जाने कैसे अब मानने लगे
दिल में पड़े थे खाली मकान
न जाने कैसे सब भर गए
डरते थे जिस प्यार से अबतक
न जाने कैसे अब कर गए
न जाने कैसे
न जाने केसे
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